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Saturday, January 2, 2010

पर्यावरण : लुप्त पक्षियों को पसन्द है क्षेत्र की आबोहवा

गरुड़ और गिद्ध के बाद चमगादड़ भी लुत्फ होने के कगार पर हैं।  क्षेत्र के पुराने पीपल, बरगद तथा कदम के पेड़ों पर हजारों की संख्या में इन्हें देखा जा सकता है लेकिन विडम्बना ही कहा जाय इन चमगादड़ों के सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं किये जाने से खुलेआम इनका शिकार जारी है। विलुप्त छोटे बड़े गरुड़ से लेकर विलुप्त पक्षियों को बसेरा यहां पर है। गिद्ध को भी इस क्षेत्र में देखा जाता है। वैसे गरुड़ों को  आम तौर पर देखा जा सकता है । इसी प्रकार  कई बार सफेद गिद्ध को देखा गया है। अब इन दो पक्षियों की लुत्फ होने की कारणों पर यदि गौर किया जाय तो पक्षी वैज्ञानिक डा. डी.एन. चौधरी का कहना है कि डायक्लोफेनिक दर्द नाशक दवाई के कारण गिद्ध मरते गये। जानकारी के मुताबिक पशुओं में दर्द हेतु चिकित्सकों द्वारा पानी की तरह इन दवाईयों का प्रयोग पशुओं पर किया गया और इन मरे हुए पशुओं का मांस जब गिद्ध ने खाया तो इसका बुरा प्रभार उन पर पड़ा और धीरे-धीरे गिद्ध हमारे नजरों से ओझल होते गये। यही हाल गरुड़ों का भी है। गरुड़ों का शिकार कर लोग इसे मानव के कई बीमारियों के लिए उपयोग करते रहे, इन तमाम कारणों के साथ सबसे अहम कारण यह भी है कि विशाल वृक्षों का बड़े पैमाने पर सफाया होना जिससे इन पक्षियों के लिए घोंसला बनाकर रहना एवं प्रजनन करना समस्या बन गया। अब यदि चमगादर की बात करें तो ये रात में देखने वाला स्तनधारी पक्षी अंध विश्वासियों का शिकार बनते जा रहे हैं और इसे मारकर मानव के लिए कई बीमारियों में इसका औषधि के रूप में व्यवहार किया जा रहा है। जिससे यह पक्षी भी लुप्त होने के  कगार पर हैं

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