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Monday, February 1, 2010

राहुल का किशनगंज दोरा | क्या मना पाएँगे रूठे वोट बैंक को ?

                              विधान  सभा चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेश के युवराज को बिहार की याद आ गई है |उस बिहार की जहा कांग्रेश ने नई करवट लेनी शुरू कर दी है | राहुल इसके नेता है | कभी कांग्रेश का गढ़ रहे बिहार में दलित एवं अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाता कांग्रेश का जनाधार माने जाते रहे है | उस बिहार में अपने पावो पर कांग्रेश को  खड़ा करने की इच्छा शक्ति के कारण राहुल ने जिस युवा कांग्रेश को आगे रख कर बिहार में अपनी गतिविधि येन चुनाव के पहले बढ़ा दी है  वह उन राजनेतिक डालो के लिए चिंता का कारण बनाता जा रहा है जो हाल के दिनों में सिमांचल में दलित एवं अल्पसंख्यक वर्ग के वोट् बैंक की जरिए राजनीति कर रही थी |   भारत के सर्वाधिक अल्पसंख्यक बहुल जिले में सुमार  किशनगंज में पहली बार राहुल गांधी के दो फरवरी को  को होने वाले कार्यक्रम के कई मैंने है |          
                                                            कांग्रेश यह जानती है की , 90 के दशक में मंडल एवं कमंडल की आंधी में  कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक रहे दलित एवं अल्पसंख्यक जब तक कांग्रेस के साथ वापस नहीं आएगे |बिहार में पुराने रुतबे में आने उसके लिए मुश्किल है |  राहुल के इस दौरे  को अपने परपरागत बोट बेंक को पाने की छ्ट पटाहट के रूप में देख जा रहा है |   मंडल एवं कमंडल के मुद्दे देश की  राजनीति में बहुत पीछे छुट गए है |  युवा व मध्य वर्ग एक नै पहचान खोज रहा है | कांग्रेश राहूल को आगे रख  युवा व मध्य वर्ग को विकल्प देने का दवा कर रहा है |  सच्चर कमेटी की सिफारिश, सूचना का अधिकार और नरेगा जैसी योजनाओं को भी राहुल गांधी से जोड़ा जा रहा है। वहीं राहुल गांधी भी अल्पसंख्यकों की राजनीति करते हुए यहां पर अल्पसंख्यक सम्मेलन कर रहे हैं।  यह सर्वविदित है की किशनगंज लोकसभा क्षेत्र सहित पूरा सीमांचल शुरूआती दौर से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है।  कंग्रेशी राहुल के इस  दोरे के जरिए १९८० के दशक में कांग्रेश के रुतबे का सपना देखने लगे है |आंकड़े भी  गवाह है  कि 1957 से 1989 के बीच हुए आठ संसदीय चुनाव में छह बार कांग्रेसी उम्मीदवार किशनगंज से जीत कर दिल्ली पहुंचे हैं जिनमें 1957 एवं 1962 में मो. ताहीर, 1971 में जमीलुर रहमान, 1980 एवं 1984 जमीलुर रहमान तथा 1989 में एम.जे. अकबर ।  इसके बाद मंदिर मस्जिद के झगड़े में यहाँ के लोगो ने कांग्रेश की संदेहास्पद भूमिका के कारण यहा के लोगो ने कांग्रेश को जो अलविदा कहा २००९ के चुनाव में कांग्रेश  स्थानीयता की भावना को भुना कर ही वापस आपाई  इसी दोरान  भाजपा  जेसी हिंदुत्व वादी दल से १९९९ , में पहली वार भाजपा उम्मीदवार जीत कर दिल्ली पहुचे |
                                                    आज  पुन: कांग्रेश इस इलाके  में अपनी खोई हुई ज़मीन की तलाश में जुटी है | किशनगंज में अल्पसंख्यक  युवा सम्मलेन  के जरिए अल्पसंख्यको को खुश करने में कामयाब हो जाते है आने वाले विधान सभा चुनाव में सिमांचल की तस्वीर कुछ अलग होगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता  है |