किशनगंज के चाय उत्पादक किसानों के मामले में सरकार की नीति हवा हवाई साबित हो रही है. आज किशनगंज के चाय उत्पादक किसान बिहार सरकार के उदासीन रवैये के कारण परेशान हैं. वे चाय पत्ती को पश्चिम बंगाल के बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर बेचने को विवश हैं. जिले में टी प्रोसेसिंग यूनिट के अभाव में हरी चाय पत्ती को बंगाल के बिचौलियों के हाथों कौड़ियों के भाव में बेचना यहाँ के किसानो के मजबूरी है |यह स्थिते तब है जब सरकार चाय के खिती के लिए किसानो को सहूलियत का दावा करती है | परन्तु व्यवसायिक फसल होते हुए भी सरकार का ध्यान चाय की खेती के प्रति उदासीन ही है |
ग़ौरतलब है कि बिहार का किशनगंज चाय का उत्पादन करने वाला पहला ज़िला है. यहां चाय की खेती करने वाले किसानों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है. मालूम हो कि किशनगंज ज़िला बंगाल के दार्जिलिंग ज़िले से सटा हुआ है, जिससे यहां की भौगोलिक संरचना, मिट्टी, जलवायु और वातावरण आदि दार्जिलिंग से मेल खाती है. वर्तमान में किशनगंज में कई प्रमुख हस्तियों के साथ व्यवसायी एवं अनेक छोटे-बड़े उत्पादक खाद्य फसलों की खेती से विमुख होकर चाय की खेती में लगे हुए हैं. सरकार के प्रयास से वर्तमान में जिले में चार चाय प्रसंस्करण यूनिट चल रहे है | परन्तु जिस जिले में लगभग 27,000 एकड़ में चाय की खेती हो रही है,वहा केवल चार यूनिट काफी कम है प्रसंस्करण इकाई के अभाव में किसान चाय पत्ती को पश्चिम बंगाल के बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों में बेचने पर विवश हैं.
हालाकी सरकार ने पोठिया प्रखंड के कच्चाकली में सरकारी टी प्रोसेसिंग यूनिट स्थापना का निर्णय लिया. इसके तहत वर्ष 2006 में सरकारी टी प्रोसेसिंग यूनिट का निर्माण हुआ, लेकिन इस यूनिट के निर्माण में लगभग 12 करोड़ का घोटाला का आरोप शुरुआत से लग रहा है | जिसमें कई नेता एव^ अधिकारी शामिल है | स्थिती यह है के छ शाल बाद भी यह प्रोसेसिंग प्लांट बंद है और इसके उपकरण ज़ंग लगने से खराब हो चुके हैं. वेसे भी किशनगंज में स्थापित अनेक चाय बागान विवादित हैं, जो भूदान की ज़मीन को स्थानीय एवं पड़ोसी राज्य बंगाल के व्यवसायियों द्वारा बंदोबस्ती करके लगाए गए हैं. यह भूमि आदिवासियों के क़ब्ज़े में थी. इस भूमि पर टी बोर्ड के नियमों की धज्जियां उड़ाकर स्थानीय हल्का कर्मचारी एवं प्रशासन ने मिलकर बागान लगाने का काम किया. टी बोर्ड के नियम के कॉलम 3 में स्पष्ट उल्लेख है कि ज़मीन पट्टे की नहीं होनी चाहिए और कॉलम 16 के अनुसार ज़िलाधिकारी से नो ऑबजेक्शन सर्टिफिकेट(एनओसी) मिलना चाहिए. इन सबके बावजूद वर्तमान में किशनगंज को टी सिटी बनाने का सपना अधूरा नज़र आ रहा है. न जाने वह दिन कब आएगा जब किशनगंज के चाय उत्पादक किसान मानचित्र पर छा जाएंगे.