असम में हिंसा और नफरत की आग बुझ नहीं रही है। वही कांग्रेस के महासचिव और असम मामलों के पार्टी प्रभारी दिग्विजय सिंह ने आग में घी डालते हुए यह कह दिया कि असम की घटना की गुजरात के दंगों से तुलना नहीं की जा सकती है। आसाम सरकार को क्लीन चिट देते हुए बडबोले दिग्विजय ने कह दिया कि गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगे राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित थे जबकि असम में हिंसा पर काबू पाने के लिए सीएम तरुण गोगोई और उनका पूरा अमला तत्काल जुट गया।
बांग्लादेश से आ रहे अवैध प्रवासी असम में जारी हिंसा की मूल वजह बताए जा रहे हैं। असम के मूल निवासियों का कहना है कि बांग्लादेश से लगातार भारत में अवैध रूप से घुस रहे लोगों की वजह से वे असुरक्षित महसूस करते हैं। असम के मूल निवासियों का कहना है कि प्रवासियों के चलते इस क्षेत्र का 'संतुलन' बिगड़ गया है। गौरतलब है कि भारत-बांग्लादेश की पूरी सीमा पर तारबंदी न होने और नदियों के चलते सीमा के उस पार से भारत में प्रवेश करना बहुत मुश्किल नहीं है। ऐसे में बड़ी तादाद में बांग्लादेशी लोग बेहतर ज़िंदगी की तलाश में भारत में प्रवेश करते रहे हैं। जानकारों का मानना है कि 1971 के बाद से बांग्लादेशियों का भारत आकर बसना जारी है। असम के नेताओं पर आरोप है कि वे इन अवैध प्रवासियों को पहचान पत्र दे देते हैं, ताकि वे उनके हक में वोट करें। बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर यहां की नागरिकता ले चुके लोगों का कोई औपचारिक आंकड़ा नहीं है। दिल्ली के एक एनजीओ आस्था भारती के हवाले से असम ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर में दावा किया गया है कि करीब 2 करोड़ बांग्लादेशी भारत में आकर बसे हुए हैं। इनमें बड़ी तादाद में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं। जम्मू-कश्मीर के बाद असम में मुस्लिमों की सबसे बड़ी आबादी रहती है। प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी तेजी से बढ़ी है। 1951 में असम में जहां सिर्फ 24.7 फीसदी मुस्लिम आबादी थी। वहीं, 2011 की जनगणना में यह आंकड़ा बढ़कर करीब 31 फीसदी हो गया। लेकिन लगता है कि केंद्र सरकार अवैध रूप से असम में रहने वाले प्रवासियों को बड़ी वजह नहीं मानती है। असम में हिंसा में बांग्लादेश का हाथ होने की आशंका को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है। असम के कई जिलों, खासकर कोकराझार में फैली हिंसा के लिए बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल (बीटीसी) के गठन में खामियों को भी जानकार जिम्मेदार मान रहे हैं। स्थानीय बोडो समुदाय और प्रवासी अल्पसंख्यकों के बीच संघर्ष बीटीसी के गठन के बाद भी जारी है। गैर बोडो समुदाय के लोगों की शिकायत है कि बोडोलैंड टेरीटोरियल एरियाज डिस्ट्रिक्ट (बीटीएडी) में बोडो समुदाय अल्पसंख्यक है। इनकी आबादी कुल आबादी की एक-तिहाई है। बीटीएडी इलाकों में रह रहे गैर बोडो लोगों की शिकायत है कि बहुसंख्यक होने के बावजूद उन्हें कई अधिकारों से वंचित रखा गयाबोडो समुदाय शिकायत करता रहा है कि अवैध प्रवासी उनके इलाकों में आकर आदिवासियों की जमीन पर बस रहे हैं। बोडो समुदाय के लोगों का कहना है कि बांग्लादेश से सटी सीमा को सील करने की उनकी मांग पूरी नहीं हो रही है। इस समुदाय का कहना है कि बोडो काउंसिल एक्ट गैर बोडो समुदाय के लिए वारदान है क्योंकि यह एक्ट गैर बोडो लोगों के जमीन के हक को वैधता देता है। वहीं, इस एक्ट का वह प्रावधान भी बोडो समुदाय को खटकता है, जिसमें बोडो या गैर बोडो समुदाय के किसी भी नागरिक के जमीन के मालिकाना हक से जुड़े अधिकार को बरकरार रखा गया है। लेकिन असम में हिंसा के पीछे प्रदेश के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को गरीबी वजह के तौर पर दिखाई देती है। गोगोई ने एक निजी चैनल से बातचीत में 'वोट बैंक' की राजनीति को हिंसा की वजह मानने से इनकार किया है। उन्होंने कहा, 'हम अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर करेंगे। ऐसा करके ही इन चीजों को रोका जा सकता है।' असम एक गरीब और पिछड़ा राज्य माना जाता है। योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2010 तक असम के 37.9 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे थे। असम में गरीबी के आंकड़े बढ़े हैं। 2004-05 में 34.4 फीसदी लोग ही वहां गरीबी रेखा से नीचे रहते थे।
पीड़ित जहां नेताओं को अपनी बदहाली के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री राज्य की बदहाली को हिंसा का कारण बता रहे हैं। हिंसा के पीछे क्या वजह है? इसे लेकर अलग-अलग दावे और राय सामने आ रही है। हिंसा की चार वजहें सामने आ रही हैं, जिनमें कुछ तात्कालिक हैं तो कुछ वजहें काफी पहले से समस्या बनी हुई हैं।