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Sunday, April 11, 2010

किसनगंज में ही क्यों अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय का केंद्र


                                                          अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के किशनगंज में प्रस्तावित केन्द्र को लेकर इन दिनों  बिहार सरकार और  विद्यार्थी परिषद् आमने सामने है। राष्ट्रीय सुरक्षा के कई मुद्दों  पर अब तक कई बार सडको पर उतर चुकी  विद्यार्थी परिषद् एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर सडको पर है  | परिषद्  पहले जहा बंगलादेशी घुसपेढ़ , तीन बीघा को बंगलादेश को  दीए जाने जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर पहले भी सडको पर उतर चुकी है परन्तु  इस बार  परिषद् जिस सरकार के खिलाफ जंग में उतरी है उसे बनाने में परिषद् के कार्यकर्ताओ ने भी खूब मेहनत की थी | भारतीय जनता पार्टी को बिहार की सता पर बैठाने में जिन  परिषद्वै के कार्यकर्ताओ ने अपने अपने  इलाके में पशीना बहाया था , उसी सरकार के खिलाफ परिषद क्यों सडको पर आया यह विषय  तब ज्यादा आश्चर्य जनक लगता है जब  यह बात भी साफ है की इसी सरकार में  उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी परिषद की ही उपज है | परिषद के राष्ट्रिय महामंत्री रह चुके  सुशील कुमार मोदी के साथ ही सरकार के कई मंत्री, विधायक एव संसद  अभाविप के जरिए राजनीति में आकर आज सत्ता के केन्द्र में हैं । उस  विद्यार्थी परिषद्  के कार्यकर्ता आन्दोलन के लिए एकाएक छात्र सडक पर नहीं उतरे।  किशनगंज के एएमयू केन्द्र के खिलाफ विद्यार्थी परिषद ने पहले सरकार को बाकायदा ज्ञापन दिया, फिर धरना दिया गया, लेकिन जब सरकार की कानों पर जूं तक नहीं रेंगी तो विगत 29 मार्च को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ता लगभग 25 हजार छात्रों के साथ बिहार विधानसभा को धेरने निकल पडे। विद्यार्थी परिषद् के इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर बिहार पुलिस ने बेरहमी से लाठियां बरशायी जिसमें सेकड़ो छात्र बुरी तरह घायल हो गये। संजोग  से गभीर रूप से घायलो में २ कार्यकर्ता किशनगंज के ही थे  | विगत एक दशक के बाद पहली बार बिहार के छात्रों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। याद रहे यह आन्दोलन न तो भ्रष्टाचार के खिलाफ है और न ही कोई शौक्षणिक मुद्दों को लेकर है। यह आन्दोलन राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर है।  तो ओर छात्र आन्दोलन की उपज रहे नितीश  के खिलाफ  बिहार का छात्र अगर आज आन्दोलन के लिए तैयार हो जाता है तो नितिश को भी यह सोचना होगा की विद्यार्थी परिषद् ने क्यों राड ठानी है |  इसके पीछे का कारण  बिहार सरकार के द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की अवहेलना है।  परिषद् का यह आरोप है की यहां विश्वविद्यालय की शाखा खुलने से इस क्षेत्र में सांप्रदायिक आतंकवाद की जडें मजबूत होगी |  छात्रों की मांग है कि किशनगंज में किसी राष्ट्र भक्त मुस्लिम के नाम पर विश्विधालय खोलिए हम उसका समर्थन करेगे । अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के केंद्र के विरोध के पीछे आन्दोलनरत छात्रों का तर्क है कि यहां विश्वविद्यालय की शाखा खुलने से इस क्षेत्र में सांप्रदायिक आतंकवाद की जडें मजबूत होगी | गृहमंत्रालय और केन्द्रीय गुप्तचर विभाग का भी मानना है कि नेपाल और भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में विगत 20 साल के अंदर बडी तेजी से मदरसे और मस्जिदों का निर्माण हुआ है। इस बात का खुलासा मामले के जानकार हरेन्द्र प्रताप ने भी अपनी पुस्तक में किया है। किशनगंज का इलाका नेपाल और बांग्लादेश की सीमा पर है। इस गलियारे को चिकेन नेक गलियारा भी कहा जाता है। यहां नेपाल के रास्ते पाकिस्तान एवं चीनी गुप्तचर सक्रिय हैं। जिस प्रकार से विश्व में इस्लामिक आतंकवाद का उभार हुआ है उससे इस बात को बल मिलता है कि जहां इस्लामी छात्रों की जमात होती है वहां गैर सामाजिक और अराष्ट्रवादी गतिविधियों को सह मिलने लगता है। इससे पहले किशनगंज एवं सिलीगुड़ी के बिच स्थित गायसल नामक स्थान पर दो ट्रेनें आपस में टकरा गयी थी। ट्रेन की टक्कर से सैकडों लोग मारे गये। इस ट्रेनों में यात्रा करने वाले ज्यादातर लोग भारतीय सेना के सदस्य थे। जब इस दुर्घटना की जांच रपट सामने आयी तो चौकाने वाले तथ्य भी सामने आये। तथ्यों की मिमांशा से यह पता चला कि ट्रेन दुर्घटना महज एक घटना नहीं थी गाडियों को बाकायदा टकराने के लिए मजबूर किया गया था। यही नहीं चीन नेपाल में लगातार अपनी स्थिति मजबूत करने में लगा है |चीन एवं पाकिस्तान   दोनों की नजर किशनगंज के उस 32 किलोमिटर वाले चिकेन नेक पर है। जब इस क्षेत्र में मुस्लिम गतिविधियां बढेगी तो स्वभाविक है कि वहां एक नये प्रकार का समिकरण भी विकसित होगा। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती जगजाहिर है। विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रवादी कार्यकर्ता इस मामले को कई मंचों से बराबर उठाते रहे हैं। ऐसे में उनका गुसशा  स्वाभाविक है। लेकिन बिहार सरकार को तो साम्प्रदायिक तूटिकरण में विश्वास है | विद्यार्थी परिषद के नेताओं का कहना है कि अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इतिहास अच्छा नहीं रहा है। इस विश्वविद्यालय के कारण ही भारत का विभाजन हुआ। आज भी विश्वविद्यालय में पृथक्तावादी शक्ति सक्रिय है। अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इतिहास वेहद काला है। जहां एक ओर दुनिया का सबसे बडा मोदरसा बरेली और देवबंद ने देश के विभाजन का विरोध किया था वही यह विश्वविद्यालय देश विभाजनकारी शक्तियों का केन्द्र हुआ करता था। इस प्रकार के विश्वविद्यालय का केन्द्र किशनगंज जैसे सामरिक और संवेदनशील जिले में खोला जाना देश की सुरक्षा के साथ खिलवार करना है।
सबसे अहम बात यह है कि पहली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के केन्द्रीय मानवसंसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने देश में अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पांच शाखा खोलने की घोषण की थी। जिसमें बिहार का किशनगंज, पश्चिम बंगाल का मोर्सीदाबाद, महाराष्ट्र का पूणे, मध्य प्रदेश का भोपाल और केरल का मल्लापुरम को चयन किया गया था। लेकिन अभी तक किसी राज्य सरकार ने विश्वविद्यालय केन्द्र स्थापना के लिए जमीन आवंटित नहीं की है। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कौम्यूनिस्ट पाटी की सरकार है, मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, केरल में भी सीपीएम की ही सरकार है और महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार है। किसी सरकार ने सुरक्षा तो किसी ने जमीन नहीं होने का बहाना बना अभी तक जमीन नहीं दिया है लेकिन बिहार सरकार ने जमीन आवंटित कर एक रहस्य को जन्म दिया है।पूरे मामले पर सरसरी निगाह डालने और किशनगंज में घटी घटनाओं की व्याख्या के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि आखिर किशनगंज को ही पहला निशाना क्यों बनाया गया है।किशनगंज विश्वविद्यालय केन्द्र का दूसरा पक्ष भी जानने योग्य है। आज से 25 साल पहले विश्वविद्यालय केन्द्र के लिए आवंटित भूमि को आदिवासियों में बांट दिया गया था। आदिवासी उसपर खेती कर रहे हैं। अब सरकार ने उन जमिनों को अधिग्रिहित कर एएमयू को आवंटित कर दी है। इससे यह साबित होता है कि नितिश सरकार को गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों की चिंता नहीं है अब वे भी सत्ता का स्वाद चख चुके हैंऔर तूस्टिकरण के माध्यम से मुस्लिम को पटा फिर से सत्ता पर काबीज होना चाहते हैं। विश्वविद्यालय को कुल 247.30 एकड जमीन दी गयी है। कोचाधामन और किशनगंज प्रखंड के जिस क्षेत्र की जमीन इस विश्वविद्यालय को दी गयी है वहां आदिवासियों की संख्या अच्छी है।  ऐसे में स्थानीय आदिवासियों के अस्तित्व पर भी संकट उत्पन्न हो गया है।कुल मिलाकर ऐसे ही कुछ आधारभूत मुद्दों को लेकर बिहार के छात्र सरकार के खिलाफ दो दो हाथ करने में लगे हैं। बिहार का वर्तमान छात्र आन्दोलन किस करवट बैठेगा, इसपर अभी कुछ कह देना जल्दबाजी होगी लेकिन जिस प्रकार बिहार विद्यार्थी परिषद् ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है उससे तो यह साबित हो गया है कि आगे इस आन्दोलन का प्रभाव राजनीतिक गठजोड पर भी पड सकता है।