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Tuesday, January 5, 2010

दो वक्त की रोटी के लिए बेचीं जा रही है सीमांचल की बेटियां

 बारह साल, 15 साल या फिर 29 साल की विधवा, उम्र कुछ भी हो सकती है। आप रेखा कह ले या रूखसाना कोई फर्क नहीं पड़ता। घर में रखे या देहरी के बाहर खेत में बैलों की तरह जोत दें, आपकी मर्जी। शादी-शुदा युवा के गले बांध दें या किसी बूढ़े के। इन्हें सिर्फ दो वक्त की रोटी चाहिए । बदले में वे सब कुछ भुलाने को तैयार है, अपना घर, परिवार, मां-बाप, भाई-बहन सब कुछ ..। यह कोई फिल्मी कहानी का पटकथा नहीं बल्कि हकीकत है। यह कहानी अपने जुबानी सुना रही है पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बुलंद शहर खुर्जा में अपने से 15 साल अधिक आयु के मर्द के पल्ले बांधी गई किशनगंज की रेखिया की।  इसने    सिर्फ इसलिए दुल्हन बनना स्वीकार किया क्योंकि शादी कर लेन से उसके मां-बाप को दस हजार रूपये मिलने वाले थे और खुद को अपेक्षाकृत बेहतर भविष्य । मां-बाप को तो पैसे मिल गए। रेखिया का यह सब्जबाग दिखाकर दुल्हन बनाया गया कि खुर्जा में तीस बीघे की जमीन है, अपना करोबार है, नौकर-चाकर है। आज रेखिया गोबर पाथने से लेकर बूढ़े हो चुके पति की सेवा तक सब कुछ करना पड़ता। मात्र 25 साल की आयु में खुद भी बूढ़ी जैसी दिखने वाली रेखिया  घर से तो खूबसूरत सपने लेकर निकली थी, मगर नसीब को शायद यही मंजूर था, फिर क्या करती ? उन्होंने बताया कि खुर्जा, छतारी, अरनिया आदि कस्बा सहित ग्रामीण क्षेत्रों तक दलालों की खास किस्म सक्रिय है। इनका नेटवर्क बिहार के बिहार के सीमांचल, पश्चिम बंगाल के बोर्डर एरिया के ग्रामीण इलाकों में फैला है। इसके जरिये इन राज्यों के ग्रामीण इलाकों में ऐसे मजबूर परिवारों को ढूंढा जाता है जो आर्थिक तंगी के वजह से अपने बेटी के हाथ पीले नहीं कर पाते। इसी मजबूरी का फायदा उठाते हुए ये दलाल इन्हें बेटी बेचने को मजबूर करते है। उन्होंने बताया कि खुर्जा में फैले नेटवर्क के सदस्यों में अधिकांश या तो खुर्जा के पाटरी में करते है या किसी डेयरी फार्म में काम करते हुए अपने आंका के संपर्क में होते है। इसीक्रम में वे दुल्हे की तलाश भी करते है है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खुर्जा सहित आस-पास के अन्य क्षेत्रों में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनकी या तो किसी वजह से शादी नहीं हो पाती है या पहली पत्‍‌नी के मर जाने के बाद दूसरी शादी करना चाहती है। खुर्जा में सक्रिय दलाल बिहार व बंगाल के तराई क्षेत्र किशनगंज, उत्तर दिनाजपुर जिले के सुदुर ग्रामीण क्षेत्रों ले जाते है। वहां उन्हें लड़किया दिखाते है और संतुष्ट कर उनके मां-बाप को उचित मुआवजा दिला देते है। वहां मां-बाप को बेटी के सुन्दर भविष्य का सब्जबाग दिखाया जाता है और आनन-फानन में शादी की रस्म अदा करा दी जाती है। वहां से ब्याह कर लाई लड़कियों के ख्वाब टूटने शुरू होते है, जब वे ससुराल पहुंचती है, जहां रानी बनकर राज करने आई थी, वहां परिवार वाले उनसे नौकरानी से भी बदत्तर बर्ताव करने लगते है। सुदूर प्रदेश से आयी लड़किया या तो यौन संतुष्टि का साधन मात्र बनकर रह जाती है या काम करने की मशीन

हरगोरी मंदिर ठाकुरगंज


उतर बंगाल एवं बिहार के सीमांत ठाकुरगंज शहर  अवस्थित हरगोरी  मंदिर में स्थापित है अद्भुत शिवलिग, जिसे  पांडव काल के भग्नावेश के खुदाई के क्रम में वर्तमान मंदिर के पूर्वोतर कोण में पाया गया था . १०५ वर्ष पुराना यह मंदिर  सम्पूर्ण विश्व में अनोखा है . वर्ष 2000 में यह   स्वर्ण जयंती वर्ष मना चुकाने वाली इस शिवलिग में आधा जगत जननी माँ पार्वती की मुखाकृति अंकित है / इसकी स्थापना कविवर रविन्द्र नाथ टेगोर परिवार द्वारा बंगला संवत २१ माघ १९५७ यानी ४ फ़रवरी १००१ को की गई थी / इस हरगोरी मंदिर में स्थापित शिवलिग के सबंध में लोगो का  कहना है की यह विश्व का एक अनोखा शिव लिंग है जिसमे शंकर के साथ माँ पार्वती विराजमान है / अब तक कई इसी घटनाए इस शिवलिग को पूजने वालो के साथ घटित हुई है जिस कारण इसे कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है | इस मंदिर के निर्माण से जुड़ा हर पहलू रोमानाचक है | जानकारों के अनुसार पशिम बंगाल का यह क्षेत्र बिहार  में जाने के पूर्व कविवर रविन्द्र नाथ ठाकुर परिवार द्वारा १८९९ के जयेष्ट माह में जमीदारी का मुख्यालय बनाने  के लिए वर्तमान मंदिर  के पूर्वोतर कोण से ईटो की खुदाई प्रारंभ  की गई | खुदाई के क्रम में मजदूरों ने  तीन शिवलिंग पाया | तीनो शिवलिंगों को ठाकुर परिवार ने कलकत्ता में मोजूद अपने मुख्यालाया भेज दिया | इन तीनो शिवलिंगों में पार्वती की मुखाकृति वाले शिवलिंग को ठाकुर  परिवार  कोलकाता के टैगोर प्लेश में स्थापित करना चाहता था | लेकिन रात में  दिखे स्वपन में टेगोर परिवार को ये मूर्ति वापस उसी स्थान पर स्थापित करने का निर्देश मिला |  अगले ही दिन ठाकुर परिवार अपने पुरोहित भोला नाथ गांगुली के साथ यहाँ आकर १९०१ में ४ फरवरी को इस शिवलिंग की स्थापना की | छोटे से टिन के बने मकान में स्थपित इस हरगोरी लिंग के स्थापना काल को वहा मंदिर प्रांगण में लगी प्लेट प्रमाणित करने को काफी है |इन एक सो  वर्षो में शिव भक्तो द्वारा एक भव्य मन्दिर का निर्माण वहा किया गया है जहा आज भी ठाकुर परिवार के पंडित  भोला गांगुली का परिवार पुजारी के रूप में पूजा रत है  | टैगोर परिवार पर स्वप्न का इतना प्रभाव पड़ा की जब  जमींदारी की भूमि को सरकार को सोपा गया तब मंदिर के भूभाग को सरकार को नहीं सोपा गया | आज भी यहाँ भूमि टैगोर परिवार का ही हिस्सा है|