Pages

Monday, September 5, 2011

मुंबई से चप्पल मंगाने के लिए मायावती ने भेजा खाली जहाज \विकीलीक्स खुलासे


                               विकीलीक्स के एक ताजे खुलासे के बाद  दलितों की मसीहा बनाने  की दावा करने वाली  यूपी की मुख्यमंत्री  मायावती  की कलई  खुल गई |   जिस उतर प्रदेश में एक बड़ी आबादी रात में. भूखे सोने को विवश है | वहा    खुद को दलितों की मसीहा बताने वाली मुख्यमंत्री मायावती ने अपने लिए एक जोड़ी चप्पल मुंबई से मंगाने के वास्ते एक निजी जेट विमान भेजा था. भारत में अमेरिकी दूतावस द्वारा वाशिंगटन को भेजे गए कई केबल में इस  खुलासे के बाद नेताओ की अयास्सी सामने आ गई |
                                  मायावती की पीएम बनने की महत्वाकांक्षा का भी वर्णन है. मायावती को जब भी चप्पलों की जरूरत होती है तो उनकी पसंदीदा ब्रांड के चप्पल को मुंबई से लाने के लिए उनका प्राइवेट जेट खाली ही उड़ान भरता है और चप्पल लेकर लखनऊ आ जाता है. अमरीकी केबल्स के अनुसार- मायावती किसी भी राज्य पहली ऎसी सीएम हैं, जिन्होंने अपने घर से दफ्तर के लिए निजी सड़कें बनवाई. माया की रईसी का आलम यह है कि यहां से गुजरने के बाद इस सड़क की सफाई की जाती है. 23 अक्टूबर 2008 के एक केबल के मुताबिक माया ने विरोधियों द्वारा जहर दिए जाने की आशंका के मद्देनजर एक फूड टेस्टर की नियुक्ति तक कर रखी है, जो माया के खाने-पीने की चीजों की सुरक्षा करता है.
                                विकीलीक्स द्वारा जारी केबल में कहा गया है कि वे अपने जन्मदिन पर नौकरशाहों, पार्टी कार्यकर्ताओं, उद्यमियों से अरबों रुपये गिफ्ट के रूप में लेती हैं और उनके अफसर उन्हें केक खिलाने का मौका तलाशते रहते हैं. है.एक जगह बताया गया है कि मायावती ने एक नौकरशाह से इसलिए इस्तीफा ले लिया क्योंकि उनकी बेटी दिल्ली में कांग्रेस में शामिल हो गई थी. एक पत्रकार के हवाले से केबल में कहा गया है कि मायावती ने अपने एक मंत्री को दंडित करते  हुए कई घंटे तक अपने सामने जमीन पर बिठाए रखा क्योंकि उसने गलती यह की थी कि राज्यपाल से मिलने जाने से पहले इसके लिए मायावती से अनुमति नहीं ली थी. यह भी कहा गया है कि यूपी में मायावती के राज में स्थिति थोड़ी बेहतर इसलिए हो जाती है क्योंकि सारा भ्रष्टाचार मायावती सिर्फ अपने हाथ में रखती हैं, किसी और को नहीं करने देतीं.
                                 मायावती ने अपनी रसोई में कुल 9 कुक नियुक्त कर रखे हैं. इन नौ में से दो तो खाना पकाते हैं और बाकी सात लोग खाना पकाने वाले दो लोगों पर नजर रखते हैं. इस केबल में मायावती की जीवनशैली, सोच, राजनीति, भ्रष्टाचार और पार्टी चलाने तौर-तरीके आदि का खुलकर विश्लेषण किया गया है. मायावती को तमाम उपमाओं से भी नवाजा गया है. जैसे कि उन्हें “a first rate egomaniac” कहा गया है. उनके यूपी पर शासन के तरीके को “like a fiefdom” बताया गया है. .
  •  

Sunday, September 4, 2011

फाइलों में हैं 12 शहरों के बदले हुए नाम


                 पश्चिम बंगाल का नाम पश्चिम बंग किए जाने का प्रस्ताव पिछले दिनों ममता बनर्जी सरकार द्वारा केंद्र को भेज दिया गया है। लेकिन ऐसे प्रस्ताव 1२ शहरों के लिए पहले ही भेजे जा चुके हैं। जिनकी फाइल किसी न किसी स्तर पर अटकी हुई है। इन प्रस्तावों में सबसे पुराना है पटना का। जो 1980 से लंबित है। ज्यादातर प्रस्ताव ऐसे शहरों के हैं, जिनके नाम मुगलकाल में रखे गए। मांग की जा रही है कि इन्हें बदलकर स्थानीय कर दिया जाए। हालांकि, कई मामलों में बदलाव का प्रस्ताव निर्विरोध नहीं है।
नाम के बदलाव का प्रस्ताव क्यों:
1. अहमदाबाद से कर्णावती
क्यों: 11वीं शताब्दी में राजा कर्णादेव ने कर्णावटी शहर बसाया। 15वीं शताब्दी में सुल्तान अहमद शाह ने शहर का नाम अहमदाबाद कर दिया। हुआ क्या: 11 मई 1990 को गुजरात सरकार के पास शहर का नाम बदलने का प्रस्ताव आया। इसे केंद्र सरकार को भेजा गया। केंद्र ने तो फैसला नहीं लिया, लेकिन अहमदाबाद म्युनिसिपल कापरेरेशन में कांग्रेस का बोर्ड बनते ही वह प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया।
२. भोपाल से भोजपाल
क्यों: 1010-1055 के बीच राजा भोज ने भोजपाल नाम से शहर बसाया। १७२३ में नवाब दोस्त मोहम्मद खान ने इसे भोपाल नाम दिया।
हुआ क्या: 28 फरवरी 2011 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने शहर का नाम बदलने के लिए नगर निगम और जिला पंचायत से प्रस्ताव मांगा। जिला पंचायत से तो सहमति का प्रस्ताव मिल गया, लेकिन नगर निगम में यह दो बार खारिज हो चुका है।
३. इंदौर से इंदूर:
क्यों:
14वीं शताब्दी के इंद्रपुर को 17वीं शताब्दी में मराठा होलकर शासकों ने इंदूर नाम दिया। आजादी के बाद इसे इंदौर कर दिया गया।
हुआ क्या:
1976 में इंदौर को दोबारा इंदूर करने की मांग उठी। 1992 में इंदौर के पूर्व राजा रावनंदलाल मंडलोई के वंशज निरंजन जमींदार ने यह मामला फिर उठाया। प्रस्ताव मुख्यमंत्री की टेबल से आगे नहीं बढ़ा।
४. औरंगाबाद से संभाजीनगर: क्यों:
16वीं शताब्दी में औरंगजेब ने शहर को अपना नाम दिया। शिवाजी के पुत्र संभाजीराजे ने इस क्षेत्र में युद्ध किया।
हुआ क्या:
शिवसेना के बोर्ड वाले नगर निगम ने इसी साल शहर का नाम बदलकर संभाजीनगर करने का प्रस्ताव राज्य शासन के पास भेजा। लेकिन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इसे बदलने से इनकार कर दिया।
५. इलाहाबाद से प्रयाग या तीर्थ राज प्रयाग
क्यों: उत्तर भारत के सबसे पुराने शहर प्रयाग का नाम मुगल शासनकाल के दौरान 15वीं शताब्दी में इलाहाबाद कर दिया गया। हुआ क्या: 2001 में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने केंद्र की एनडीए सरकार के पास शहर का नाम बदलने का प्रस्ताव भेजा। इसके विरोध में आल इंडिया मुस्लिम फोरम और पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध दर्ज कराया। प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली।
६. मुगलसराय से दीनदयाल नगर
क्यों:
जनसंघ के अध्यक्ष दीनदयाल उपाध्याय की इसी शहर में मौत हुई थी। इसलिए भाजपा सरकार नाम बदलना चाहती थी। हुआ क्या: 1999 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याणसिंह ने मुगलसराय का नाम दीनदयाल नगर करने की घोषणा की। इस बारे में प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद भाजपा सरकार गिर गई, फिर इस बारे में कोई पूछताछ नहीं हुई।
७. पटना से पाटलीपुत्र
क्यों: पांचवी शताब्दी इसा पूर्व में मगध राज्य की राजधानी का नाम पाटलीपुत्र रखा गया, जिसने चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक के शासनकाल में ख्याति अर्जित की। पांच सौ वर्ष पहले इसका नाम बदलकर पटना कर दिया गया।
हुआ क्या: 1980 में बिहार सरकार ने केंद्र के पास शहर का नाम बदलने का प्रस्ताव भेजा। लेकिन उस पर कोई जवाब नहीं आया।
--------------------------
ये भी हैं प्रस्ताव
८. हैदराबाद से भाग्यनगरम्
९. मैसूर से मैसूरू
1क्. मेंगलोर से मेंगलुरू
1१. आरटी नगर से राठीनगर
1२. अलीबाग से श्रीबाग --------------------------------------
बदलाव की मुख्य वजह:
-अंग्रेजी नामों की जगह स्थानीय नाम देने के लिए। (कालीकट को कोझीकोड किया गया)
-यूरोपीय मूल के नामों को भारतीय मूल का नाम बनाने के लिए। (पुर्तगाली नाम बांबे को मुंबई किया गया)
-स्थानीय भाषा के अनुसार अंग्रेजी स्पेलिंग बदली गई। (क्वीलोन को बदलकर कोल्लम किया गया)
-अरबी या फारसीमूल के नामों को भारतीय मूल का नाम देने के लिए। (अहमदाबाद का प्रस्तावित नाम कर्णावती)

अफ़जल गुरू पर खर्च हुई रकम का रिकॉर्ड नहीं


नयी दिल्लीः संसद पर हमले के दोषी और मौत की सजा पाने वाले अफ़जल गुरू की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कितनी रकम खर्च हुई, इसका ब्यौरा तिहाड़ जेल के अधिकारियों के पास नहीं है.
सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगे गए एक प्रश्न के जवाब में जेल अधिकारियों ने यह सूचना दी है. अधिकारियों ने आवेदनकर्ता को बताया कि किसी भी कैदी के उपर खर्च होनेवाली इस तरह की राशि का ब्यौरा नहीं रखा जाता है. तिहाड़ जेल के जेल महानिदेशक कार्यालय के सार्वजनिक सूचना अधिकारी ने आवेदन के जवाब में कहा, किसी भी कैदी की सुरक्षा, सलामती और खाने-पीने के उपर खर्च होनेवाली राशि का ब्यौरा नहीं रखा गया है.
गौरतलब है कि अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय नागरिक अधिकार परिषद् (नेशनल काउंसिल फ़ॉर सिविल लिबर्टीज) नामक एक गैर सरकारी संगठन ने यह आवेदन दाखिल किया था और पूछा था कि सरकार ने अफ़जल गुरू की सुरक्षा और उसके खाने-पीने पर अभी तक कितना पैसा खर्च किया है. दूसरी तरफ़, एनजीओ के उपाध्यक्ष मुकेश कुमार ने इस जवाब को अविश्वसनीय बताया है और इसके खिलाफ़ जेल महानिदेशक कार्यालय की प्रथम अपीलीय प्राधिकरण के सामने अपील की है. इस अपील में कुमार ने दावा किया है कि उनकी जानकारी के मुताबिक, हर जेल में हाई-प्रोफ़ाइल कैदियों के खर्चों का ब्यौरा रखा जाता है.
अपने इस दावे की पुष्टि के लिए उन्होंने उन मीडिया रिपोर्टों का हवाला दिया है, जिनमें कहा गया था कि महाराष्ट्र सरकार, मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब की सुरक्षा और खाने-पीने पर होने वाले खर्चे का ब्यौरा रख रही है. अपील में एनजीओ ने कहा, हमारी जानकारी के मुताबिक इस तरह के हाई-प्रोफ़ाइल कैदी अफ़जल गुरू विशेष कक्ष में रखे जाते हैं और उसके उपर होने वाले हर तरह के खर्चे का ब्यौरा जेल अधिकारियों द्वारा रखा जाता है.