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Friday, January 22, 2010

क्या खुलेगा नेताजी की मोंत का राज ?



हमेशा की तरह  इस मर्तबा भी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन हर साल की तरह ही मनाया गया  और रस्मी तौर पर उन्हें याद किया गया , पर आजादी के बासठ साल से ज्यादा गुजर जाने के बावजूद 23 जनवरी 1897 को जन्मे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इस नायक की मौत के बारे में सही जानकारी अब तक लोगों को नहीं मिल पाई है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान आखिर कैसे गई? यह एक ऐसा सवाल है, जो हर हिंदुस्तानी को सोचने पर मजबूर कर देता है। बीते दिनों सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारियों के बाद इस अनसुलझी पहेली के तार और ज्यादा उलझते नजर आ रहे हैं। पर सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर नेताजी की मौत की गुत्थी को सुलझाने के लिए कोई सुगबुगाहट नजर नहीं आ रही है। सरकारी महकमा कहता आया है कि 1945 में हुई विमान दुर्घटना में ही नेताजी की मौत हो गई। पर इस महान देशभक्त में रुचि रखने वालों और नेताजी पर अध्ययन करने वालों का दावा है कि नेताजी की जान विमान हादसे में नहीं गई थी। पर अहम सवाल यह है कि ये दावे तथ्यों और तर्को की कसौटी पर कितना खरे उतरते हैं? 18 अगस्त 1945 को कथित तौर पर ताईवान में एक विमान दुर्घटना हुई थी। भारत सरकार कहती रही है कि इस हादसे में मरने वालों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी शामिल थे। अब तक यह कहा जाता रहा है कि महात्मा गांधी से बगावत करके जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का गठन करके फिरंगियों के खिलाफ भारत की आजादी के लिए जंग छेड़ने वाले नेताजी की अस्थियां जापान के रेंकोजी टेंपल में रखी हुई हैं। नेताजी की मौत की गुत्थी को सुलझाने के लिए बनी शाहनवाज कमेटी और खोसला कमीशन की रिपोर्ट भी इसी बात की पुष्टि करती है। पर मामले का दूसरा पहलू हैरत में डालने वाला है। अब यह कहा जा रहा है कि नेताजी की मौत उस विमान हादसे में नहीं हुई थी। अब इस पर भी विवाद पैदा हो गया है कि विमान दुर्घटना हुई भी थी या नहीं। उस कथित विमान हादसे पर सवालिया निशान खुद ताइवान सरकार लगा रही है। ताईवान सरकार ने कहा है कि 18 अगस्त 1945 को वहां कोई विमान हादसा नहीं हुआ था। ऐसा होता तो ताईवान के अखबारों में उस समय यह खबर जरूर छपी होती। वर्ष 1999 में एनडीए सरकार ने नेताजी की मौत की तहकीकात के लिए जस्टीस एमके मुखर्जी की अध्यक्षता में मुखर्जी आयोग का गठन किया। मुखर्जी आयोग ने भी इस बात की पुष्टि कर दी कि नेताजी की मौत उस कथित विमान हादसे में नहीं हुई थी। अहम सवाल यह है कि आखिर किस रिपोर्ट को सही माना जाए। एनडीए के नेता कहते रहे हैं कि नए तथ्यों के अधार पर मुखर्जी आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि नेताजी की मौत उस विमान हादसे में नहीं हुई। पर सियासी वजहों से कांग्रेस सरकार ने उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया। इससे इतना तो साफ है कि एक महान देशभक्त की मौत पर भी अपने देश के नेता सियासत करने से बाज नहीं आए। सोचने वाली बात यह भी है कि आखिर कांग्रेस के राज में गठित कमेटी उसकी मर्जी के मुताबिक और एनडीए के राज में बनाई गई कमेटी उसकी विचारधारा के मुताबिक रिपोर्ट क्यों देती है? बड़ा सवाल यह है कि स्वतंत्रता की लड़ाई के एक महान नायक नेताजी के बारे में आजाद भारत के लोगों को सच्चाई का पता कब चल पाएगा? मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट आने के पहले भी नेताजी की मौत को लेकर खासा विवाद रहा है। कई लोग लंबे समय से यह दावा करते रहे हैं कि जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी गई अस्थियां नेताजी की नहीं, बल्कि वह एक जापानी सैनिक की है, लेकिन सरकार इसे ही नेताजी की अस्थियां मानती रही है और जापान दौरे पर जाने वाले हिंदुस्तानी नेता भी इसी के आगे सिर झुकाते रहे हैं। अब यह बात खुल गई है कि जापान के रेंकोजी मंदिर में 1945 से संभाल कर रखी जा रही अस्थियां नेताजी की नहीं हैं। मुखर्जी आयोग ने इस बात की पुष्टि तो की ही, साथ ही इस मसले पर 1965 में बनाई गई शाहनवाज जांच समिति में भी मतभेद रहा है। शाहनवाज समिति के तीसरे सदस्य नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि इस बात का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जिसके आधार पर यह मान लिया जाए कि टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी की हैं। नेताजी को जिस कथित विमान हादसे का शिकार बताया जाता है, उसमें उनके साथ लेफ्टिनेंट कर्नल हबीबुर्रहमान खान भी थे। उनसे इस बारे में कई बार पूछताछ की गई। उन्होंने बार-बार यही कहा कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में बुरी तरह जल गए थे और इसके बाद उनकी मौत अस्पताल में हो गई थी। सुभाष चंद्र बोस से जुड़े विषयों पर काम करने वाली संस्था मिशन नेताजी के लोगों ने जब इस बारे में तथ्यों को खंगाला तो उन्हें इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले कि रहमान ने नेताजी के बारे में जो कहा वह सच नही था। 1946 में जब उन्हें अपने मित्र और नेताजी के सचिव मेजर ई भास्करन ने नेताजी की मौत के बारे में कुरेदा तो रहमान ने कहा था कि उन्होंने नेताजी को वचन दे रखा, लिहाजा इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। सूचना के अधिकार के तहत जब जानकारी मांगी गई कि जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी गई अस्थियों को भारत लाने के लिए सरकार क्या कर रही है? इस सवाल का जो जवाब मिला, उससे सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगता है। जवाब में कहा गया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों को भारत लाने के संबंध में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। जब सरकार मानती है कि वे अस्थियां नेताजी की ही हैं तो सवाल यह उठता है कि आखिर उन्हें अब तक भारत क्यों नहीं लाया गया? एक सरकारी फाइल में तो उस समय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सचिव रहे एमओ मथाई ने लिखा है कि भारत के विदेश मंत्री ने टोकियो के भारतीय उच्चायोग से नेताजी की अस्थियों और नेताजी के कुछ और सामानों के साथ उनके पास से मिले तकरीबन दौ सौ रुपये रिसिव किए थे। मालूम हो कि उस समय विदेश मंत्रालय भी जवाहर लाल नेहरू के पास था। अहम सवाल यह है कि इन अस्थियों का क्या किया गया? क्या ये अस्थियां नेताजी के परिजनों के पास पहुंची? इन सवालों का जवाब सरकार के पास नहीं है। यह बात भी सामने आई है कि रेंकोजी मंदिर के पुजारी ने 23 नवंबर 1953 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को पत्र लिखकर बताया था कि 18 सितंबर 1945 से नेताजी की अस्थियां वहां रखी जा रही हैं तो उस समय नेताजी की अस्थियों को वापस लाने के लिए आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाए गए? जाहिर है 1945 से लेकर अब तक नेताजी के मामले में सरकार का रवैया गैर-जिम्मेदराना रहा है। आखिर देश के एक महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी नेताजी के बारे में सच देश की जनता के सामने आ पाएगा? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। मौजूदा सरकार भी इस दिशा में कुछ कराती नजर नहीं आती |

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